बात अब की नहीं, थोड़ी पुरानी है
लम्हा-लम्हा कटती जिंदगी में यादों की रवानी है।
१२वीं पास कर, दिल में कुछ सपना लिए
पड़ गए चकर में कालेज में प्रवेश के
तिकड़म करे और सहे हमने
आखिर लगी कश्ती, यूनिवर्सिटी के किनारे पर
नया माहौल, आशा और उमंगे थीं
स्कूल की बंदिशें न होमवरक का डण्डा था
पढ़ाई से कुछ खास मतलब न था
जाते थे, बस मन बहलाने को
चमक- दमक और फर्राटा अंगे्रजी
गोरी-गोरी लड़कियां और नेतागिरी
बस... समय यूं हीं गुजरता था।
फिर एक दिन अचानक!
एक शख्स ‘माजिद’
पहली मुलाकात,
वह थोड़ा हैरान और परेशान था,
यूनिवर्सिटी के मिजाज से बीरकुल अंजान था
पता चला बंदा ‘फॉरेन’ से आया है
है देशी, लेकिन परवरिश वहां पाया है।
क्लास के बाहर वह औपचारिक मुलाकात,
हाल चाल और जान पहचान की बात
पता नहीं क्यूं?
उसका सीधापन, साफगोई मन को भा गई
उससे आत्मियता सी बन गई।
दिल में दोस्ती की एक ज्योती जल गई।
बातचीत का दौर और घर में आना-जाना हुआ
हमारा दोस्ती का रिश्ता पुख्ता और पुराना हुआ।
उसके नेक ख्याल, हमदर्दी
‘इस्लाम’ की इबारतों का ज्ञान भाता था,
सच्चाई, ईमानदारी और धर्म में विश्वास
उसको भीड़ से अलग खास इंसान बनाता,
लड़·ियां उस पर मरती, दोस्त उसके कायल,
खूब पढ़ाई, मस्ती भी करी
पढ़ाई लिखाई के इतर नाम कमाया।
धीरे-धीरे यूनिवर्सिटी के हदें पार करी
अपने पैरों पर खड़े हुए,
दुनियादारी की शुरुआत करी।
काम की सिलसिले में,
इस शहर से उस शहर आशियाना हुआ।
रोजी रोटी केके चक्·रों में उलझ गए,
समय कम रहा, बस फोन पर सिमट गए,
फिर भी मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा,
छह महीने में एक बार सही
दोस्त से दोस्त मिलता रहा।
aभी हाल में वह
haal me ले कर आया,
उसने मुझे अपनी शादी में बुलाया,
सुन कर हर्षाया मन, ह्रदय से आशीष बरसा,
दूर मलेशिया से वह ‘मंजा’ को अपना बना लाया।
एक खुशी के बाद
उसने दूसरा पैगाम सुनाया,
अपने घर में नन्हें-मुन्ने की दस्तक का आगाज
बताया
यह सोच कर ही मन रोमांचित है,
खुश हूं की मेरा दोस्त,
‘पापा’ बनेगा।
माजिद और मंजा को शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाई।
तुम्हारा दोस्त
अरुण वर्मा