Monday, August 23, 2010

तुम बिन सूनी राखी

तुम बिन सूनी राखी मेरी
याद कर खुश हो लेता हूँ
वो पुराने दिन
जब तुम राखी के दिन जल्दी तैयार हो जाती।
हम को नीद से जगा कर कहती
जल्दी तैयार हो जावो, हम तैयार होते।
तुम जल्दी से थाली लातीं।
हल्दी और चावल का टिका लगती।
दूब की पंखुड़ियों को कानो पर साजती।
माँ के आँचल सा रुमाल सर पे डालती .
सूनी कलाई पर राखी सजाती ...

रुपयों के लिए तेरे झगड़े
sarart se से मिठाई मुंह में tushna.
hansi majak wo masti yaad aati hai।

अब हर राखी उन बिताये सुनहरे पालो की
याद भर लाती है...
तेरी कागज में लिपटी राखी
tujse दुरी का अह्शाश करती है....

Thursday, January 14, 2010

अंकुर तुम याद आए

भाई तुम फिर याद आए
मालूम है मुझे
मैने की ज्‍यादती तुम पर
मारा पीटा, तुमको दुख दिया
मालूम नहीं था
तुम इतने कम समय के लिए साथ हो
ऐसे छोड कर एक दिन अचानक चले जाओगे।
बहुत याद आती है तुम्‍हारी
एक बार कहीं मिल जावो
तो मैं बता सकूं।
कितना चाहता हूं तुमको
तुम्‍हारी आंखों से निकले आंसू
आज तक मेरी आंखों से बहते हैं।

सोचता हूं काश मैं इतना क्रू नहीं होता
काश मुझे पता होता
तुमारे पास समय कम था।
मैने जो किया है।
उसके लिए अपने आप को ताउम्र माफ नहीं कर सकूंगा।
बस एक बार आ कर कह दो
ददा कोई बात नहीं
बस एक बार आकर
फिर गले से लग जावो

फिर से हम पंतग उडाएं
कंचे खेले, ताश खेले
नाचे, गाए एक्टिंग करें।
भाई तुम को बहुत मिस करता हूं।

इतनी दूर क्‍यों चले गए
की तुम्‍हारे पास आना मुमकिन नहीं है।

काश तुम से मिल पाता
तुम से माफी मांग पाता
तुम्‍हें बता पाता की
तुम से कितना प्‍यार करता हूं।