Tuesday, September 27, 2011

अंशू

आंखों से बहते इस बेरंग पानी में


कभी दुःखों का स्याह,


कभी खुषी का धानी रंग बहता है।


ये मोती कह देते हैं दिल की बात,


ऐसे जैसे, कोई रहबर तेरे दिल की बात करता है।


और,सारे जमाने की किस्मत लेकर आया है वो तकिया


जो तेरे नयनों से निकले जज्बातों को जप्त करता है।

Sunday, September 25, 2011

राजस्थान में बेटियों को पैदा होने का हक क्यों नहीं ?



घटता बाल लिंगानुपात - दुःखद सच
सन् 2011की जनगणना ने एक बार पुनः सभी को चौंका दिया है। प्रति 10 वर्ष में घोषित जनगणना के आंकड़ों से निरन्तर गायब होती जा रही बेटियों की संख्या से सभी शर्मसार हुए हैं। इस दृष्टि से भारत का बाल लिंगानुपात ( 0-6 वर्ष तक की आयु वर्ग में प्रति 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या ) में सन् 2001 के 927 की तुलना में सन् 2011 के 914 के आंकडो़ में 13 के अंतर को स्पष्ट देखा जा सकता है। दूसरी ओर हमारे राज्य राजस्थान में यह अन्तर - 26 का हो गया है। 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में 0-6 वर्ष आयु वर्ग में प्रति 1000 लड़कों पर मात्र 883 लड़कियां रह गई हैं। लड़कियों की संख्या में आ रही भारी गिरावट के कारण हमारे राज्य की लगभग 7 लााख लड़कियां गायब हैं। राजसमंद जिले में (जहां पिछली जनगणना सन् 2001 में लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या भी 1000 थी और जिसे जिले के लिए गर्व का सूचक माना जाता था) बाल लिंगानुपात के आंकडो में आए - 45 के अन्तर ने जहां एक ओर हम सभी को हिलाकर रख दिया। वहीं दूसरी ओर सरकारी व गैर सरकारी व अन्य संगठनों द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों पर सवाल खड़ा कर दिया है। राजसमंद में सन् 2001 में बाल लिंगानुपात 936 था जो कि सन् 2011 में घटकर 891 रह गया है। जिले की जनसंख्या में से 10026 बेटियां गायब है। जबकी सन् 1991 में अलग जिले के रुप के अस्तित्व मेें आने के बाद पिछले 20 वर्षो में राजसंमद में साक्षरता के साथ - साथ संसाधन और जानकारी भी बढ़ी है। राज्य के डूंगरपुर, जयपुर, सीकर, टोंक, झुंझनू, अलवर, दौसा, भरतपुर करौली और सवाई माधोपुर जिले में भी बाल लिंगानुपात तेजी से घटा है। बेटियों की निरन्तर घटती जनसंख्या इस बात की ओर संकेत देती है कि राज्य में पी.सी.पी.एन.डी.टी. कानून के सही क्रियान्वयन में कमी है। सरकार, स्ंवयसेवी संस्थाओं और प्रशासन द्वारा किए जा रहे प्रयास काफी नहीं है। राज्य में अनचाही लड़कीयों को अस्वीकार करने के लिए प्रयोग की जा रही अल्ट्रा साउण्ड तकनीक का प्रयोग निरन्तर बढ़ता जा रहा है। यह जानकरी तब प्रकाश में आई जब सन् 2006 में एक नीजी चैनल द्वारा करवाए गए स्ट्रींग ऑपरेशन से राज्य के 22 जिलों में 100 से भी अधिक चिकित्सकों को पकड़ा गया था। इसके बाद राजस्थान मेंडीकल कांउसंिलंग द्वारा की गई कार्यवाही के बावजूद राज्य में सोनोग्राफी मशीनांे का प्रयोग बदस्तूर जारी है। राज्य के लोग पडो़सी राज्यों में जाकर गर्भ में पल रहे शिशु की लिंगजांच का काम धड़ल्ले से करवा लेते हैं और यह पता चलने पर कि गर्भ में लड़की है, गर्भपात करवा देते हैं। इसी विषय पर काम कर रही स्वयं सेवी संस्था सीफार द्वारा 13 जिलों में विभिन्न संस्थाओ और संगठनों के साथ किए जा रहे कार्य के दौरान स्पष्ट हुआ कि राज्य में 1651 नीजी क्लिनीक एंव 122 सरकारी अस्पताल अल्ट्रा साउण्ड केन्द्र के रुप में पंजीकृत हैं। 1000 से अधिक पंजीकृत नीजी क्लिनिकों में लिंग जांच का काम धड़ल्ले से जारी है। (सीफार - 2010) लड़का पैदा होने की इच्छा, लड़कियांे के जन्म पर खुश न होने की परम्परा, दहेज प्रथा , बाल विवाह और छोटी आयु में गर्भधारण करना और महिलाओं की षिक्षा में कमी जैसे महत्वपूर्ण कारण इस सामाजिक असमानता के प्रति जिम्मेदार हैं।सवाल मानसिकता में बदलाव का है और बेटियों की गरिमा को पुर्नस्थापित करने का है। पी.सी.पी.एन.डी.टी एक्ट के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए सभी को आगे आना होगा। इसके लिए व्यापक प्रसार-प्रचार की जरुरत है। इसे जन - जन का मुद्द्ा बनाया जाना जरुरी है। आम जनों को भी इस जानकारी से परिचित होना आवश्यक है कि गर्भ में पल रहे शिशु की लिंग जांच करवाना कानूनन अपराध है और इसके लिए सजा का प्रावधान है। दूसरी ओर बेटियों की महत्ता को बढाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। जन्मोत्सव के साथ ही उसके समुचित पालन - पोषण , शिक्षा व सम्मान का सुनिश्चितकरण समाज में उनकी गरिमा को बढाने में सहायक होगा। अन्त में खास सबक उन जिलों से भी ले जहां विगत 10 वर्षों की जनगणना में बाल लिंगानुपात पहले की अपेक्षा बढा है, जैसे श्रीगंगानगर। वहां की सफल प्रेक्टिसिस का पता लगाकर यह जाना जा सकता है कि किस तरह से उन्होने यह संभव कर दिखाया। इसके लिए आम व्यक्ति द्वारा ली जाने वाली जिम्मेदारी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है।

Saturday, September 3, 2011

मेरा दोस्त है मेरी दुवाओं में...







बात अब की नहीं, थोड़ी पुरानी है


लम्हा-लम्हा कटती जिंदगी में यादों की रवानी है।


१२वीं पास कर, दिल में कुछ सपना लिए


पड़ गए चकर में कालेज में प्रवेश के


तिकड़म करे और सहे हमने


आखिर लगी कश्ती, यूनिवर्सिटी के किनारे पर



नया माहौल, आशा और उमंगे थीं

स्कूल की बंदिशें न होमवरक का डण्डा था
पढ़ाई से कुछ खास मतलब न था

जाते थे, बस मन बहलाने को

चमक- दमक और फर्राटा अंगे्रजी

गोरी-गोरी लड़कियां और नेतागिरी

बस... समय यूं हीं गुजरता था।


फिर एक दिन अचानक!

एक शख्स ‘माजिद’

पहली मुलाकात,

वह थोड़ा हैरान और परेशान था,

यूनिवर्सिटी के मिजाज से बीरकुल अंजान था

पता चला बंदा ‘फॉरेन’ से आया है

है देशी, लेकिन परवरिश वहां पाया है।


क्लास के बाहर वह औपचारिक मुलाकात,

हाल चाल और जान पहचान की बात



पता नहीं क्यूं?

उसका सीधापन, साफगोई मन को भा गई

उससे आत्मियता सी बन गई।

दिल में दोस्ती की एक ज्योती जल गई।

बातचीत का दौर और घर में आना-जाना हुआ

हमारा दोस्ती का रिश्ता पुख्ता और पुराना हुआ।



उसके नेक ख्याल, हमदर्दी

‘इस्लाम’ की इबारतों का ज्ञान भाता था,

सच्चाई, ईमानदारी और धर्म में विश्वास

उसको भीड़ से अलग खास इंसान बनाता,

लड़·ियां उस पर मरती, दोस्त उसके कायल,


खूब पढ़ाई, मस्ती भी करी

पढ़ाई लिखाई के इतर नाम कमाया।

धीरे-धीरे यूनिवर्सिटी के हदें पार करी

अपने पैरों पर खड़े हुए,

दुनियादारी की शुरुआत करी।


काम की सिलसिले में,

इस शहर से उस शहर आशियाना हुआ।

रोजी रोटी केके चक्·रों में उलझ गए,

समय कम रहा, बस फोन पर सिमट गए,

फिर भी मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा,

छह महीने में एक बार सही

दोस्त से दोस्त मिलता रहा।

aभी हाल में वह


haal me ले कर आया,


उसने मुझे अपनी शादी में बुलाया,

सुन कर हर्षाया मन, ह्रदय से आशीष बरसा,

दूर मलेशिया से वह ‘मंजा’ को अपना बना लाया।


एक खुशी के बाद

उसने दूसरा पैगाम सुनाया,

अपने घर में नन्हें-मुन्ने की दस्तक का आगाज

बताया

यह सोच कर ही मन रोमांचित है,

खुश हूं की मेरा दोस्त,

‘पापा’ बनेगा।

माजिद और मंजा को शुभकामनाएं और ढेर सारी बधाई।

तुम्हारा दोस्त

अरुण वर्मा