Monday, August 23, 2010

तुम बिन सूनी राखी

तुम बिन सूनी राखी मेरी
याद कर खुश हो लेता हूँ
वो पुराने दिन
जब तुम राखी के दिन जल्दी तैयार हो जाती।
हम को नीद से जगा कर कहती
जल्दी तैयार हो जावो, हम तैयार होते।
तुम जल्दी से थाली लातीं।
हल्दी और चावल का टिका लगती।
दूब की पंखुड़ियों को कानो पर साजती।
माँ के आँचल सा रुमाल सर पे डालती .
सूनी कलाई पर राखी सजाती ...

रुपयों के लिए तेरे झगड़े
sarart se से मिठाई मुंह में tushna.
hansi majak wo masti yaad aati hai।

अब हर राखी उन बिताये सुनहरे पालो की
याद भर लाती है...
तेरी कागज में लिपटी राखी
tujse दुरी का अह्शाश करती है....