Wednesday, November 9, 2011

जिंदगी

ये जिंदगी, यू न कर खेल


नाजो से पले हैं हम


इतनी दुश्वारियां न सह पाएंगे।


तू ऐसे करेगी सितम अगर


बस... समझ ले, शीशे से टूट जाएंगे।


यहां जीने को जरूरी है दुनियादारी


तो ठीक है, पर हम यह न कर पाएंगे।


प्यार और नेकनियती कैसे छोड़ दें


बता दे तू इनको छोड़ेंगे तो न रह पाएंगे


मजबूर मत कर झूठा और मक्कार बनने पर


अगर, बन गए तो कभी शीशा न देख पाएंगे।


फिर तू भी गैर बन के पूछेगी सवाल


याद रख


जवाब, हम न दे पाएंगे।