Thursday, September 18, 2008

खोया राखी, सिंदूर, लाठी

लाशों के ढेर में शिनाख्त बच्चे की

उम्मीद-नउम्मीद अजीब कशमकश की

अपना नहीं तो लाल है किसी का

राखी है, सिंदूर है, लाठी है किसी का

किसकी लाश खोजू मैं, सब अपने

इस मौत के मंजर में अब नहीं अपने

छीना धमाको ने बेटा नहीं है

छीनी है राखी, लूटा है सिंदूर

तोडा है घर और छीना है सपना

कॉपी, कलम और किताबें खतम की

तोडा है चस्मा और बूढी लाठी

तोडी सुहागन के हाथो की चूड़ी

कुचला है मान अपने वतन का

करना ख़त्म अब इस द्हसत को है

इनको सबक अब हमें है सिखाना..........

3 comments:

manvinder bhimber said...

तोडी सुहागन के हाथो की चूड़ी

कुचला है मान अपने वतन का

इन को अब इनकी भाषा है समझानी

शान्ति नही अब जंग है निभानी

करना ख़त्म अब इस द्हसत को है
sahi chitran kiya hai

seema gupta said...

राखी है, सिंदूर है, लाठी है किसी का

किसकी लाश खोजू मैं, सब अपने
" bhut dardnak or sacha chitran hai, ek ek shabd se dard tapak rha hai"
Regards

एम आई ज़ाहिर said...

aapke lekhan mein lay hai aur sanvednaaon ki gahrai bhi.bahut khhobsoorat.kavita mein aajkal chhand gaun aur khhayal aur rhythm aham ho gaye hein.lalak aur rujhan achhchha hai.badhai.