Thursday, October 30, 2008

क्यूं ये पागलपन है

नही मालूम क्या हुआ है मुझे
हर बार की तरह
फिर भावानाओं ने बाहुपास में जकडा है
मालूम है फिर से तड़प, आंशू और जुदाई होगी
लेकिन दिल है कि सुनने को तैयार नही।

सोचता हूं, मौला ने कर्म फरमाया है या सजा दी है
सब कि तरह मुझ को भी बनाया होता
लोगो से केसे काम निकलना है सिखलाया होता
मुझे में वो सारी बुराई डालता
जो जमाने में जिंदा रहने को जरुरी है।
मुझको भी खुदगर्ज और मौकापरस्त बनाया होता।

मुझको भी सिखलाता थोडी दुनियादारी,
चापलूसी और मक्कारी
ममता, प्यार और नेकनीयती न दी होती।
आँखों में आंशू देता लेकिन मगरमछी

मेरे मौला बड़ी मुश्किल से जी रहा हूं
अपनी इस सराफत पे कुढ़ रहा हूं
मेरे मालिक मुझ को भी शैतान बना
ताकि जिन्दगी के बचे दिन
चैन से काट सकूं..............

8 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

मेरे मौला बड़ी मुश्किल से जी रहा हूं
अपनी इस सराफत पे कुढ़ रहा हूं
मेरे मालिक मुझ को भी शैतान बना
ताकि जिन्दगी के बचे दिन
चैन से काट सकूं..............

bahut sunder

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

Puneet Sahalot said...

मेरे मौला बड़ी मुश्किल से जी रहा हूं
अपनी इस सराफत पे कुढ़ रहा हूं
मेरे मालिक मुझ को भी शैतान बना
ताकि जिन्दगी के बचे दिन
चैन से काट सकूं..............

hello bhaiya..!!!
brilliant poem... har lafz... bahut achha h.. har line me aaj ki sachhi tasveer pesh ki h aapne..

Neha Maheshwari said...

hello sir,i like ur poem very much.maine aaj tak etni originality ki poem kbhi nhi suni.fantastic sir...har line ek kahani bayan karta h kisi na kisi ki.......

Unknown said...

KAMAL KIYA HAI .....KUCH LINE ME PURI JINDAGI UTAR DI HAI

Unknown said...

Its very nice........Good going.........Keep it up

Anonymous said...

good

Anonymous said...

www.mewarmaharanas.blogspot.com