Saturday, January 3, 2009

अनजान राहों में




अनजान राहों में फिर से तनहा

चलता जा रहा हूँ, बिन मंजिल के

तुम मिली तो इक पल को लगा

अब भटकना नही पड़ेगा।

लेकिन ये सपना भी टूट गया।

जिन्दगी का इक नया सबक

चुपके से तुमने सिखा दिया

पाने-खोने का सुख और दुःख

जीते और लड़ते रहने का

आगे ही आगे बड़ते रहने का

इक नया पथ दिखला दिया।