पानी के बुलबुले सी है जिन्दगी
बनती है बिगडती है हर पल
कभी सपनों में कभी हकीक़त में
कभी अपनों में कभी बेगानों में।
बुलबुले की तरह जिन्दगी अनजान बेपरवाह
न आने का गम न जाने की परवाह
अगर आई है इस धरा पे तो जीना चाहती है
इस दुनिया के रंजो-गम को समेटना चाहती है।
बुलबुले की तरह जिन्दगी मदमस्त-मस्तमौला
ना देखती है आँगन गरीब का अमीर का
न देखती है हिन्दू न देखती है मुस्लिम
वो बनती हर आंगन वो बनती हर मजहब।
बुलबुले की तरह जिन्दगी आई है रंग भरने
कभी हँसी के कभी गम के
कभी हार के कभी जीत के
कभी हार कर जीत जाने का।
बुलबुले की तरह जिन्दगी आई है मिट जाने को
पर मिटने से पहले इस जन्हाँ को दे जाने को
कुछ यादें, कुछ रंग और जीने का फन
न बनने की खुसी न फूट जाने का गम।
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3 comments:
बुलबुला क्षणिक होता है परन्तु होने का अह्सास करा देता है । बहुत अच्छा लिखा है । लिखते रहिए।
बहुत बढ़िया.
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निवेदन
आप लिखते हैं, अपने ब्लॉग पर छापते हैं. आप चाहते हैं लोग आपको पढ़ें और आपको बतायें कि उनकी प्रतिक्रिया क्या है.
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कृप्या दूसरों को पढ़ने और टिप्पणी कर अपनी प्रतिक्रिया देने में संकोच न करें.
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
बहुत खूब कहा आपने!!
वाकई जिंदगी जीने का नाम है,
आगे बढ़ने का नाम है,
दुख और हार से डर जाएँ,
क्या जीना इसी का नाम है???
कभी-2 मेरे जीवन में ऐसे मोड़ भी आते हैं कि यह महसूस होता है कि बस! अब और नहीं जीना.....परंतु यह क्षणिक होता है!
जिंदगी थोड़ी खूबसूरत तो है हीं,बस नजरिए की बात है.....!!
धन्यवाद
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