Sunday, June 14, 2009

किताबों से कर ली दोस्‍ती...

इस तन्‍हाई और एकांकी जीवन में
मैंने सच्‍चे दोस्‍त ढूढ लिए हैं।

वे मुझे जीवन जीने की कला सीखाते,
मुझको सही राह दिखाते,

इस समाज के ताने बाने,
आचार विचार, रहन सहन को,
समझने में मदद करते,

मुझे इनसे दुनियादारी, ईमानदारी, अनुशासन
स्‍वशासन, नेतृत्‍व, जुझारूपन की
सीख मिलती है।

ये मुझसे कभी नाराज नहीं होते
जब भी वक्‍त मिलता है
मैं इनकी संगत में होता हूं।

ये न कभी मुझे डांटते
न लडते, न शिकायते करते हैं।

ये कभी कहानी, कभी कविता बनकर
कभी विचार, कभी याद बनकर
कभी खबर, कभी निबंध बनकर
मेरे सामने होते हैं।

ये मेरी कल्‍पना से अठखेलियां करते,
मेरी सोच को झकझोर देते हैं।
मेरे विचारों में परिवर्तन लाने की कूबत हैं इनमें

काली स्‍याही से बने, क ख ग को
अपने में समेटे ये दोस्‍त
जीवन का फलसफा कहते हैं।

ये मुफकिर है
जो मुझको परमात्‍मा, माया मोह
सुख दुख, मिलन, विक्षोह पर
तार्किक भाषण देते हैं।

अरावली के बियाबान
कंकरीट के जंगलों में
इनका साथ मुझे सुकून देता हैं।

ये दोस्‍त मेरी किताबें हैं
जिनसे मैने दोस्‍ती कर ली है।

1 comment:

NATURE said...

किताबें मन का संसार है
किताबें घर-परिवार है
न हो अगर कोई साथ तो
किताबों में ही बहार है।

आपकी कविता अच्छी है, इस विधा को जारी रखें..
शुभकामनाएं...

सादर।