Saturday, July 12, 2008

राजनीति का नाटक


आखिर कर वाम दलों ने समर्थन वापस ले लिया। जो सबसे अचरज की बात रही, वो थी समाजवादी पार्टी का कांग्रेस को समर्थन, ये वही समाजवादी पार्टी है जिसके नेतृत्व में तीसरे मोर्चे का गठन हुआ था। और जो सभों में भाजपा और कांग्रेस दोनों को कोसते थे। आज वो सांप्रदायिक ताकतों के विरुद्ध कांग्रेस को मजबूत कर रहे है। अगर भाजपा को हटा दे तो बाकि बची पार्टियां जिनका वो विरोध कर रहे है कभी उनके साथ गलबहियां कर रहे थे। ये है अवसरवादी राजनीति का लाजवाब उदाहरण और मुहावरे को चरितार्थ करता प्रकरण की राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है न दुश्मन । कांग्रेस और भाजपा का विकल्प की बात करने वाले तीसरे मोर्चे के नेता अब मजाक से लगते है।

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