Saturday, September 27, 2008

हिंदू या मुस्लिम



हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेडिये

अपनी कूर्सी के लिए जज्बात को मत छेडिये

हममें कोई हुण, कोई शक, कोई मंगोल है

दफ़न है जो बात उस बात को मत छेडिये

गर गलतियां बाबर की थी, जुम्मन का घर फिर क्यों जले

एसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेडिये

है कहां हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज खां

मिट गए सब कौम की औकात को मत छेडिये


छेडिये इक जंग, मिलजुल कर गरीबी के खिलाफ


दोस्त, मेरे मजहबी नगमात को मत छेडिये।


अदम गोंडवी

6 comments:

nadeem said...

वाह!! क्या बात है..

Arun Aditya said...

AAJ KE HALAAT MEN EK JARURI GAZAL. SHUKRIYA.

वीनस केसरी said...

एक अच्छी गजल पढ़वाने के लिए धन्यवाद


गजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये www.subeerin.blogspot.com

वीनस केसरी

नई पीढ़ी said...

लेकिन मेरे भाई आज राजनीती का सबसे बड़ा हथियार ही बन गया है जज्बातों से खेलना. आपकी ऐसी सोच में हम भी आपके साथ है. ऐसे ही लगे रहो.

नई पीढ़ी said...

लेकिन मेरे भाई आज राजनीती का सबसे बड़ा हथियार ही बन गया है जज्बातों से खेलना. आपकी ऐसी सोच में हम भी आपके साथ है. ऐसे ही लगे रहो.

Neha Maheshwari said...

hello my frnd told me abt ur blogspot. ilike most hindu muslim its fantastic man