Monday, October 6, 2008

दुल्हन बनेगी मेरी गुडिया

दुल्हन बनेगी मेरी गुडिया
पता नही कब बड़ी हो गई.

जैसे अभी कल ही की बात हो

जब हम दोनों गुड्डे गुडियों के खेल खेलते थे
साइकल की सवारी करते
स्कूल जाते, लडाई करते।
वो पढ़ती मै न पढने के बहाने करता
मै पिटता तो, तो उसकी सरारत समझता।

उसकी हाथो में लगी मेहंदी ने
बचपन की सारी यादों को रंग दिया
मेरी आँखों को तरल कर दिया

जानता हूं अब वो दौर खत्म हो गया

अब नए रिश्ते होंगे नई बात होगी
जीवन की नई, अलबेली शुरुवात होगी
इक नई और अनजानी डगर पर
वो अपने जीवन साथी के साथ होगी ।


लेकिन माँ की तरह भाई का दिल भी
ममता से सराबोर है घबराता है, पुलकित है
हर्षित है थोड़ा रुवासा भी है।

पता है ममता ये ज्वार उठाती......


9 comments:

Richa Joshi said...

भावपूर्ण अभिव्‍यक्ति।

manvinder bhimber said...

अब नए रिश्ते होंगे नई बात होगी
जीवन की नई, अलबेली शुरुवात होगी
इक नई और अनजानी डगर पर
वो अपने जीवन साथी के साथ होगी ।


लेकिन माँ की तरह भाई का दिल भी
ममता से सराबोर है घबराता है, पुलकित है
हर्षित है थोड़ा रुवासा भी है।

पता है ममता ये ज्वार उठाती......
ममता से सराबोर भावपूर्ण अभिव्‍यक्ति।

mehek said...

bahut sundar

वीनस केसरी said...

आपकी सोंच आपकी कहन अच्छी लगी


वीनस केसरी

Udan Tashtari said...

बहुत भावुक अभिव्यक्ति!! बधाई.

योगेन्द्र मौदगिल said...

Sunder Bhavbodh ki kavita

Unknown said...

Its best. I cried while reading. I love u.

Puneet Sahalot said...

Hello bhaiya...!!!
aapki poem padhi. Kaafi acchi lagi. or kya kahun bas dil ko chhu gayi..

gautam yadav said...

यार तू वही अरुण तू इतना अच्छा लिखता है, ये मुझे आज पता चला यार, भावनाओं का गागर उढ़ेल कर रख दिया.
keep it up yaar