दुल्हन बनेगी मेरी गुडिया
पता नही कब बड़ी हो गई.
जैसे अभी कल ही की बात हो
जब हम दोनों गुड्डे गुडियों के खेल खेलते थे
साइकल की सवारी करते
स्कूल जाते, लडाई करते।
वो पढ़ती मै न पढने के बहाने करता
मै पिटता तो, तो उसकी सरारत समझता।
उसकी हाथो में लगी मेहंदी ने
बचपन की सारी यादों को रंग दिया
मेरी आँखों को तरल कर दिया
जानता हूं अब वो दौर खत्म हो गया
अब नए रिश्ते होंगे नई बात होगी
जीवन की नई, अलबेली शुरुवात होगी
इक नई और अनजानी डगर पर
वो अपने जीवन साथी के साथ होगी ।
लेकिन माँ की तरह भाई का दिल भी
ममता से सराबोर है घबराता है, पुलकित है
हर्षित है थोड़ा रुवासा भी है।
पता है ममता ये ज्वार उठाती......
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9 comments:
भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
अब नए रिश्ते होंगे नई बात होगी
जीवन की नई, अलबेली शुरुवात होगी
इक नई और अनजानी डगर पर
वो अपने जीवन साथी के साथ होगी ।
लेकिन माँ की तरह भाई का दिल भी
ममता से सराबोर है घबराता है, पुलकित है
हर्षित है थोड़ा रुवासा भी है।
पता है ममता ये ज्वार उठाती......
ममता से सराबोर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
bahut sundar
आपकी सोंच आपकी कहन अच्छी लगी
वीनस केसरी
बहुत भावुक अभिव्यक्ति!! बधाई.
Sunder Bhavbodh ki kavita
Its best. I cried while reading. I love u.
Hello bhaiya...!!!
aapki poem padhi. Kaafi acchi lagi. or kya kahun bas dil ko chhu gayi..
यार तू वही अरुण तू इतना अच्छा लिखता है, ये मुझे आज पता चला यार, भावनाओं का गागर उढ़ेल कर रख दिया.
keep it up yaar
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