Friday, April 3, 2009

कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पर

कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पर
कुछ बिना मांगे मिलतें हैं
कुछ हम बनाते हैं।

कुछ रिश्तो में अजीब सी घुटन
साथ रहकर भी कोसों की दूरी

ऐसा जैसे नदी के दो किनारे
साथ-साथ चलतें हैं, मिलने को तरसते हैं
निभाते हैं ऐसे सजा हो जैसे

प्यार, विश्वास, ममता नही
खून के रिश्ते बेमानी से लगते हैं

लेकिन कुछ रिश्ते जीवन में खुशियां भरते हैं

ना खून का रिश्ता, ना भाषा का
ना धर्म एक, ना रीत-रिवाज
फिर भी उनका साथ कितना शुकून देता है

जहां सारे रिश्ते बैमानी लागतें है
वहीं कुछ रिश्ते ..............

2 comments:

Alpana Verma said...

लेकिन कुछ रिश्ते जीवन में खुशियां भरते हैं

ना खून का रिश्ता, ना भाषा का
ना धर्म एक, ना रीत-रिवाज
फिर भी उनका साथ कितना शुकून देता है

जहां सारे रिश्ते बैमानी लागतें है
वहीं कुछ रिश्ते ..............

achchee bhaav abhivyakti hai

संगीता पुरी said...

सही कहा ... बहुत सुंदर रचना।