Sunday, June 29, 2008

आप में है वो बात


हाँ सिर्फ़ आप में है वो बात जो और किसी में नही। ये बात भूल जाए की कोई आप से श्रेष्ट है। आप पुरी दुनिया में एक हो, आप जैसा कोई नही । ईस्वर की सर्वश्रेष्ट कृति हो आप। हर पल हर लम्हा आप को बनाने वाला आप के साथ है। बस कमी है तो सिर्फ़ अपने आप को पहचनाने की। आप सुब कुछ कर सकते हो, जरुरत है सिर्फ़ और सिर्फ़ आत्मविश्वास की। अपने आप को पहचानो और निकल पडो दुनिया को अपने मुट्ठी में कर लेने को। कड़ी मेहनत को अपना हथियार बनवो। ईस्वर पर भरोसा रखो, धर्य से काम लो, और देखना कामयाबी इक दिन तुम्हारे कदम चूमेंगी। मुश्किले तुम्हरे शामने ठहर नही पायेगी। कामयाबी तुम्हारा इस्तकबाल करेगी।

Monday, June 23, 2008

हाय-हाय महंगाई


लो भइया ! मुद्रास्फिति अपने १३ साल पुराने रिकार्ड को तोड़ कर ११.२ के क़रीब पहुंच गई। अर्थशास्त्र में पढा था कि जब मुद्रास्फिति ५ से ६ के बीच में हो तभी वो किसी भी विकासशील देश के लिए सही और उन्नति लाने वाली होगी। अगर ये आकंडा ६ से उपर हुआ तो समझ लो की अर्थव्यवस्था में महंगाई और बेरोजगारी अपने चरम पर होगी देश का बैंड नही पुरा का पुरा ऑर्केस्ट्रा बजेगा। ये समझ लीजिये अपने देश का ऑर्केस्ट्रा बज रहा है। वीपक्च इस ओर्केस्ट्रा में जहाँ नाच रहा है। वही सत्तापक्च परेशान है।

Friday, June 20, 2008

अरुषि को बना दिया मजाक


हमारे अपने भाई बंधूवों ने, अरे.......... नही समझे मीडिया वाले भाई लोगो ने एक १८ साल की बच्ची की मौत का खूब मजाक उड़ाया। टीवी चैनलों ने खूब टी.र.पी कमाई। उस से लेकर उसके खानदान भर के अवैध सम्बन्धों का खुलासा किया। उस दौर में लग रहा था। पूरी दुनिया में इससे बड़ी और कोई घटना ही नही घटी। ख़ैर छोड़ो इस बहस को आप और हम जानते ही है कि पत्रकारिता अब मिशन नही पैसा कमाने का साधन बन गयी है। ये पोस्ट सिर्फ़ इस लिए लिख रहा हूँ कि अभी अमर उजाला का इ पेपर पढ़ रहा था। उस पर समाचार था कि अब अरुषि का एम.एम.स भी बाजार में आ गया है। उसमे लिखा था कि अरुषि के नाम कि लोकप्रियता भुनाने के लिए उसकी जैसी लड़की को शूट करके एम.एम.स बाजार में उतारा गया है जिससे अच्छा रूपया कमाया जा सके। रूपया तो कमा सकते है। लेकिन प्रश्न यह है कि ये जो रुपया कमाया , टी.आर.पी कमाई वो अरुषि को बेच कर कमाई या अपने जमीर को बेच कर

Thursday, June 19, 2008

मेरा गांव

आज अचानक ही मामा का फ़ोन आया। उन्होंने पूछा आम खाने नहीं आवोगे जो अमूमन वो हर गर्मी की छुट्टियां शुरु होने पर पूछते थे। मै थोडी देर तक परेशान रहा की मै ये कैसे भूल गया की ये आम का सीजन है। बीते हुए सालों में इस समय मै अपने गांव में होता था। रह -रह कर मुझे हर वो बात और शैतानी याद आने लगी जो मै बचपन में किया करता था। आम के बागों से आम चुराना उनको बेच कर मिले पैसों से सिनेमा देखने जाना। सुबह जल्दी उठकर सीप (पका आम ) बीनने जाना। रात में बागवानी या बाग़ की रखवाली करने के लिए बाग़ में रुकना। तालाब से मछली पकड़ना और उन्हें भुन कर खाना और जब नाना को ये बात पता चलती थी तो मार भी खता था।
वो नानी की कहानियाँ वो माँसी से खटपट वो चुपके -चुपके गेहू बेच कर बरफ ( एस्क्रीम")खाना।
जाने कहना खो गया ..........................

Sunday, June 8, 2008

बचपन की सोच

बचपन मे स्कूल मे जब राजस्थान के बारे मे पढ़ा था। तो बाल मन मे ये धरना बन गयी थी कि पूरा राजस्थान रेगिस्तान है। जो जवानी के २२ बसंत देखने के बाद भी बनी रही। आज जब मैं राजस्थान के सहर उदयपुर मे रोजी-रोटी के सिलसिले मे हूँ। राजस्थान को देख, सुन और समझ रहा हूँ। तो अपने ज्ञान पर हँसी आती है। आज ही मैं ने यहाँ हुई बारिस का भरपूर आनंद लिया।

Saturday, June 7, 2008

कुछ उदयपुर के बारे मे

इस जगह की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है। चारो ओर से अरावली की पाह्डियो से घिरा यह सहर, अमन और शान्ति का है। हालाकिं मुझे यहां की भाषा समझने मे थोडी कठनाई होती है। लेकिन इससे कोई खास फर्क नही पड़ता। लोग इतने प्यारे है कि सारी दिककते अपने आप दूर हो जाती है। खाने की क्या बात करे यहां के नटराज (खाने की दुकान) ने हम खाने के सहुकीनो का दिल जीत लिया। इतने प्यारे से खाना खिलाते है जयसे माँ खिलाती है। आबो -हवा के क्या कहने ठंडी-ठंडी हवा सुबह को रंगीन बनाती है। शाम को झीलों ( पिछोला, फतेह्सागर,दूध तलाई ) के किनारे बैठने का मजा ही कुछ और है। नीमच माता और करनी माता ने अपना आवास पहन्डियो के ऊपर बनाया है मन्दिर मे जा कर माँ का आशीर्वाद तो मिलता ही है सहर का बहुत खूबसूरत नजारा मिलता है आज तक के लिए बस इतना ही .............................