आज अचानक ही मामा का फ़ोन आया। उन्होंने पूछा आम खाने नहीं आवोगे जो अमूमन वो हर गर्मी की छुट्टियां शुरु होने पर पूछते थे। मै थोडी देर तक परेशान रहा की मै ये कैसे भूल गया की ये आम का सीजन है। बीते हुए सालों में इस समय मै अपने गांव में होता था। रह -रह कर मुझे हर वो बात और शैतानी याद आने लगी जो मै बचपन में किया करता था। आम के बागों से आम चुराना उनको बेच कर मिले पैसों से सिनेमा देखने जाना। सुबह जल्दी उठकर सीप (पका आम ) बीनने जाना। रात में बागवानी या बाग़ की रखवाली करने के लिए बाग़ में रुकना। तालाब से मछली पकड़ना और उन्हें भुन कर खाना और जब नाना को ये बात पता चलती थी तो मार भी खता था।
वो नानी की कहानियाँ वो माँसी से खटपट वो चुपके -चुपके गेहू बेच कर बरफ ( एस्क्रीम")खाना।
न जाने कहना खो गया ..........................
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