पापा तुमसे सीखा...
अपने पैरों पर चलना
आवाज पर जुबां फेर बोलना
तारों में दादी को ढूढना
कहानियों में खुद को तलाशन।
नन्हें हाथों में कलम तुमने थमाई
क ख ग, ए बी सी डी से मिलवाया
कैसे अक्षरों से शब्द बनाएं
कैसे पढें और पढाएं।
तुमसे से सीखा सच बोलना
ईमानदारी का सबक
मेहनती लोगों का यश होता है,
ये आपने हमको बताया।
याद है मुझे आप की डांट
शैतानी पर पडी मार
अच्छे काम पर गले से लगाना
पुच्कारना और प्यार जताना।
हमारे भविष्य को लेकर
आप का त्याग
अपनी इच्छाओं का दमन
दो पैंट शर्ट के जोंडों,
एक जोडी चप्पलों में साल काटना।
शब्दों में मुश्किल है, पापा
तुमको लिखना,
तुम्हारे संघर्षों को, मुश्किलों को समझना
तुम प्यार व सादगी का अथाह सागर हो
मेहनत का पर्याय तुम्हारा जीवन है।
तुम्हारा अंश हूं
तुमसा बनना चाहता हूं।
बस आप जैसी ही मेरी पहचान बने
ये आशीश चाहता हूं।
आप दीर्घ आयु हों, निरोग रहें
भगवान से मेरी प्रार्थना है।
Sunday, August 9, 2009
Sunday, June 14, 2009
किताबों से कर ली दोस्ती...
इस तन्हाई और एकांकी जीवन में
मैंने सच्चे दोस्त ढूढ लिए हैं।
वे मुझे जीवन जीने की कला सीखाते,
मुझको सही राह दिखाते,
इस समाज के ताने बाने,
आचार विचार, रहन सहन को,
समझने में मदद करते,
मुझे इनसे दुनियादारी, ईमानदारी, अनुशासन
स्वशासन, नेतृत्व, जुझारूपन की
सीख मिलती है।
ये मुझसे कभी नाराज नहीं होते
जब भी वक्त मिलता है
मैं इनकी संगत में होता हूं।
ये न कभी मुझे डांटते
न लडते, न शिकायते करते हैं।
ये कभी कहानी, कभी कविता बनकर
कभी विचार, कभी याद बनकर
कभी खबर, कभी निबंध बनकर
मेरे सामने होते हैं।
ये मेरी कल्पना से अठखेलियां करते,
मेरी सोच को झकझोर देते हैं।
मेरे विचारों में परिवर्तन लाने की कूबत हैं इनमें
काली स्याही से बने, क ख ग को
अपने में समेटे ये दोस्त
जीवन का फलसफा कहते हैं।
ये मुफकिर है
जो मुझको परमात्मा, माया मोह
सुख दुख, मिलन, विक्षोह पर
तार्किक भाषण देते हैं।
अरावली के बियाबान
कंकरीट के जंगलों में
इनका साथ मुझे सुकून देता हैं।
ये दोस्त मेरी किताबें हैं
जिनसे मैने दोस्ती कर ली है।
मैंने सच्चे दोस्त ढूढ लिए हैं।
वे मुझे जीवन जीने की कला सीखाते,
मुझको सही राह दिखाते,
इस समाज के ताने बाने,
आचार विचार, रहन सहन को,
समझने में मदद करते,
मुझे इनसे दुनियादारी, ईमानदारी, अनुशासन
स्वशासन, नेतृत्व, जुझारूपन की
सीख मिलती है।
ये मुझसे कभी नाराज नहीं होते
जब भी वक्त मिलता है
मैं इनकी संगत में होता हूं।
ये न कभी मुझे डांटते
न लडते, न शिकायते करते हैं।
ये कभी कहानी, कभी कविता बनकर
कभी विचार, कभी याद बनकर
कभी खबर, कभी निबंध बनकर
मेरे सामने होते हैं।
ये मेरी कल्पना से अठखेलियां करते,
मेरी सोच को झकझोर देते हैं।
मेरे विचारों में परिवर्तन लाने की कूबत हैं इनमें
काली स्याही से बने, क ख ग को
अपने में समेटे ये दोस्त
जीवन का फलसफा कहते हैं।
ये मुफकिर है
जो मुझको परमात्मा, माया मोह
सुख दुख, मिलन, विक्षोह पर
तार्किक भाषण देते हैं।
अरावली के बियाबान
कंकरीट के जंगलों में
इनका साथ मुझे सुकून देता हैं।
ये दोस्त मेरी किताबें हैं
जिनसे मैने दोस्ती कर ली है।
Wednesday, April 29, 2009
अनुभव
अनुभव जीवन का अबूझ, अनजान, अनसुलझा
नित नए एहसास खुशी, गम, असमंजस, दुविधा
पशोपेश में मन हर पल
क्या सही, क्या गलत
सुलझा अनसुलझा।
पहचान, प्रतिष्ठा, सम्मान, अपनापन
दूरी, नजदीकी, पाना, खोना
जीत, हार, वार, तकरार
द्वेष, प्यार, इज्जत, बदतमीजी
याद सब, फिर भूल कब।
उतार-चढाव, गिरना-संभलना
निरन्तर प्रगति तो क्यों न चलना
चल चल की मीलों चलना
नित नए शब्दों को गढना।
ये शब्द जीवन का शब्दकोष
जिन से जीवन का सार सारा
ये शब्द ही अनुभव की परिभाषा
इस परिभाषा में ही जीवन सारा।
नित नए एहसास खुशी, गम, असमंजस, दुविधा
पशोपेश में मन हर पल
क्या सही, क्या गलत
सुलझा अनसुलझा।
पहचान, प्रतिष्ठा, सम्मान, अपनापन
दूरी, नजदीकी, पाना, खोना
जीत, हार, वार, तकरार
द्वेष, प्यार, इज्जत, बदतमीजी
याद सब, फिर भूल कब।
उतार-चढाव, गिरना-संभलना
निरन्तर प्रगति तो क्यों न चलना
चल चल की मीलों चलना
नित नए शब्दों को गढना।
ये शब्द जीवन का शब्दकोष
जिन से जीवन का सार सारा
ये शब्द ही अनुभव की परिभाषा
इस परिभाषा में ही जीवन सारा।
Friday, April 17, 2009
मौन क्यों हैं हम
गरीबी, लाचारी बेबसी देखकर
मौन क्यों हैं हम
मजलूमों पर हो रहे जुल्मों-सितम देखकर
मौन क्यों हैं हम
रिश्तों में कम होती मिठास देखकर
मौन क्यों हैं हम
घरों के दरम्यां उठती दिवारों को देखकर
मौन क्यों हैं हम
मौन क्यों हैं हम
देश जलता देखकर
मौन क्यों हैं हम
जल रहा वजूद है अब
हम फिर भी मौन हैं
अगर मौन ही रहे तो
अब भूचाल आएगा
नष्ट होगा देश और समाज जाएगा
मौन तोड अब हमें जवाब देना है
मां, मातृभूमि को हिसाब देना है .....
मौन क्यों हैं हम
मजलूमों पर हो रहे जुल्मों-सितम देखकर
मौन क्यों हैं हम
रिश्तों में कम होती मिठास देखकर
मौन क्यों हैं हम
घरों के दरम्यां उठती दिवारों को देखकर
मौन क्यों हैं हम
अपने में मरता इंसान देखकर
मौन क्यों हैं हम
मौन क्यों हैं हम
देश जलता देखकर
मौन क्यों हैं हम
जल रहा वजूद है अब
हम फिर भी मौन हैं
अगर मौन ही रहे तो
अब भूचाल आएगा
नष्ट होगा देश और समाज जाएगा
मौन तोड अब हमें जवाब देना है
मां, मातृभूमि को हिसाब देना है .....
Friday, April 3, 2009
कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पर
कितने अजीब रिश्ते हैं यहां पर
कुछ बिना मांगे मिलतें हैं
कुछ हम बनाते हैं।
कुछ रिश्तो में अजीब सी घुटन
साथ रहकर भी कोसों की दूरी
ऐसा जैसे नदी के दो किनारे
साथ-साथ चलतें हैं, मिलने को तरसते हैं
निभाते हैं ऐसे सजा हो जैसे
प्यार, विश्वास, ममता नही
खून के रिश्ते बेमानी से लगते हैं
लेकिन कुछ रिश्ते जीवन में खुशियां भरते हैं
ना खून का रिश्ता, ना भाषा का
ना धर्म एक, ना रीत-रिवाज
फिर भी उनका साथ कितना शुकून देता है
जहां सारे रिश्ते बैमानी लागतें है
वहीं कुछ रिश्ते ..............
कुछ बिना मांगे मिलतें हैं
कुछ हम बनाते हैं।
कुछ रिश्तो में अजीब सी घुटन
साथ रहकर भी कोसों की दूरी
ऐसा जैसे नदी के दो किनारे
साथ-साथ चलतें हैं, मिलने को तरसते हैं
निभाते हैं ऐसे सजा हो जैसे
प्यार, विश्वास, ममता नही
खून के रिश्ते बेमानी से लगते हैं
लेकिन कुछ रिश्ते जीवन में खुशियां भरते हैं
ना खून का रिश्ता, ना भाषा का
ना धर्म एक, ना रीत-रिवाज
फिर भी उनका साथ कितना शुकून देता है
जहां सारे रिश्ते बैमानी लागतें है
वहीं कुछ रिश्ते ..............
Wednesday, March 18, 2009
Saturday, January 3, 2009
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