Thursday, August 28, 2008

अकेला हूँ

अकेला हूँ अपनों के बीच में

अपने लगते है पराये से

कमी कुछ नही है जीवन में

पर क्यों लगता है कुछ नही है पास में

जीत लेने को है अनंत आकाश

बाहें फैलाय कामयाबी बुलाती है

पर नही बड़ते कदम उसका आलिंगन करने को

सोचता हूँ ये कामयाबी क्या देगी मुझे

समाज में नाम, परिवार और प्रतिष्ठा

इक बनावाटी जिन्दगी, इक झूटी शान

नही चाहिए ये दायरे की जिंदगी

जिसमे सब बन्धनों में बंधा हो

जिसमे हर तरफ लक्ष्मन रेखा हो..........

Tuesday, August 26, 2008

परेशान हूँ मैं

कुछ दिनों से बड़ा परेशान हूँ मैं
कुछ लिखना चाहता हूँ पर लिख नहीं पाता हूँ ।

सोचता हूँ पर सोच नही पाता हूँ
विचारों ने भी दामन छोड़ दिया है।

शब्दों ने आकार लेना बंद कर दिया है
ऐसा लगता है अभिव्यक्ति अब मुश्किल है।

बस संस्थान के निर्देशों पर इस कलम को चलाना है ।
आगे का जीवन कलम की दलाली करके बिताना है ।

सोचता हूँ छोड़ दूँ इस बंधुवा कलम को
लेकिन............................................

Saturday, August 23, 2008

कृष्ण दीवानी ..........

तेरी बातें बड़ी सुहानी
कभी सूनी न ऐसी कहानी
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !

द्वरिका में राधा गोपी
घट घट घूमें वो तो जोगी
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !

श्याम से उसने लगन लगाई
सब के मन में जोत जगाई
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !

धड़कन बोले गिरधर-गिरधर
मन में शमाए कितने मंजर
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !

ऐसी भक्ति, ऐसी पूजा
देखा नहीं है कोई दूजा
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !

जप कर तेरे नाम की माला
रास का हाला विष का प्याला
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !

दर्शन दर्शन अँखियाँ तरसे
गिरधर तेरी मेहर को तरसे
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !

ज़ाहिर सर की कलम से
सृजन रात १२.२७ से १२.30

Thursday, August 21, 2008

शबाना को मुश्किल से मिला फ्लैट

अभी १७ तारीख को हिन्दुस्तान समाचार पत्र के फ्रंट पेज पर खबर थी। उसमें शबाना आजमी ने सी.एन.एन -आई बी एन के इक कार्यक्रम में बताया कि मुसलमान होने के कारण उन्हें मुंबई में फ्लैट खरीदने में दिक्कत हुई। इसी से मिलाती-जुलती कहानी सैफ अली खान की भी थी। ये तो हुई नामचीन लोगो की बात, अब मै बताता हूँ कि इक मेरे सहकर्मी भी इसी समस्या से दो चार हुए, गुनाह सिर्फ़ इतना कि वो भी मुसलमान थे। कुछ इसी तरह कि समस्या दलित और आदिवासियों लोगों के साथ भी होती है। तीनो का कुसूर सिर्फ़ और सिर्फ़ इतना होता है कि इक समाज के सबसे नीचे पायदान का होता है। जिसे सभ्य समाज गन्दा और अपने साथ में बैठने के काबिल नही समझता दूसरा अघोषित आतंकवादी है। और तीसरे का तो निवास स्थान ही जंगल है तो उसका शहर और कस्बों में क्या काम?
अगर बात मुसलमानों कि करें तो पश्चिम के कुछ देश जिनमे अमेरिका अग्रणी है, ने सारी दुनिया के मुसलमानों को आतंकवादी बताने कि मुहीम चला रखी है। हम लोग भी अपने मुसलमान भाइयों को अमेरिका के चश्मे से देखते हैं। अभी हाल में बंगलोर और अहमदाबाद में बम धमाके हुए। पुलिस ने तफ्तीश की और कुछ लोगो को पकड़ा जो की इक खास धर्म की वेश-भूषा के थे। अभी उन पर आरोप सिद्ध भी नही हुए हैं। लेकिन मीडिया वालों ने उनको आतंकवादी घोषित कर दिया। हो सकता है की उनमें से कुछ अपराधी हों लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है की हर आतंकवादी घटना के बाद इक ही धर्म के लोग क्यों पकड़े जाते है? घटना के कुछ समय के बाद ही पुलिस केस को हल केसे कर लेती है? केसे वो मुतभेड में अपराधी को मार गिराती है? अगर उसका नेटवर्क इतना ही तेज है तो वो घटना होने से पहेले ही केवों पता नही लगा लेती?

Thursday, August 14, 2008

अभिनव इंडिया, अनुपम इंडिया, अद्वितीय इंडिया

१०८ साल
बात वो बहुत पुरानी है।
आज ये नई कहानी है॥
साथ सारा देश है तेरे।
और सारी दुनिया दीवानी है॥

मिल्खासिंह और मल्लेस्वरी का रुदन है
और पीटी उषा का भी करुण क्रंदन है
सत्य, अहिंषा, संयम व सदभावना के संग
खुशियों से झूमते सारे देश का वंदन है

आतंकवाद के दौर में
अमरनाथ के शोर में
काल के कपाल पर
आँख की भी ताल पर

ये सुहानी रात है
इक नई सी बात है
झूमती है कामधेनु
जबरदस्त मात है

उड़ गया झू हो गया छू
सुनहरा हार है रूबरू
पल्झिनो का साथ है
क्या कमाल हाथ है।

हर तरफ है इक उमंग
बज रही है जलतरंग
बजा चीन में जन गन मन
नाच उठा है ये तन मन

जान ले ये बेखबर !
हाथ में है ये नजर!
खामोशी को चीर कर
आया है ये समर
जीत चुका है वो समर।

ऍम. आई जाहिर सर की कलम से ...........


Monday, August 11, 2008

जीत लिया सोना


आखिर कर २८ सालों बाद हमने सोना जीत ही लिया। इससे पहले १९८० में मोस्को में हॉकी ने हमें सोना दिलाया था। उस तारीख से कल की तारीख तक एक अरब का यह देश सोने के लिए तरसता रहा था। इस से पहले लिएंडर पेस उसके बाद कर्लुम्माहेस्वारी और पिछले ओलंपिक में राजवर्धन राठोड़ ने कांसा और चांदी का तमगा दिलवाया और किसी तरह लाज रखी। मजे की बात यह है की ११२ साल के ओलंपिक के इतिहास में किसी भारतीय ने पहली बार व्यक्तिगत स्पर्द्धा में सोना जीता है। सरकार इस जीत का सेहरा अपने सर बांधेगी। और सुरेश कलमंडी ( ओलम्पिक सिर्वेसर्वा) इसको अपने प्रयसों का प्रतिफल बतायेंगे ।
लेकिन क्या आप जानते है ? ये सोना कैसे मिला?
थोड़ा इस बारे में जानते हैं।
अभिनव के पिता उद्योगपति है और उन्होंने शूटिंग जैसे मंहगे खेल के लिए अभिनव के ऊपर पुरे पांच करोड़ खर्च किए और प्रक्टिस के लिए घर में ही शूटिंग रेंज बनवा दी. जो शायद हमारे देश का आम बाप अपने खिलाड़ी बच्चे पर नही कर पाएगा। मेरा यहाँ ये बात कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर ओलंपिक जैसी बड़ी खेल प्रतियोगिता में तम्गन जीतना है तो प्रतिभावान खिलाडियों को ऐसी सुविधा उनके आस-पास के खेल मैदानों तक पुहुचानी चाहिये। जिस तरह अभिनव को राज्य सरकारें इनाम देने की घोषणा कर रही है। ऐसे ही घोषणा सहर कस्बों के खिलाड़ियों के लिए करनी चहियें ।

Saturday, August 9, 2008

दोस्तों की याद













बचपन के खेल वो दोस्तों का साथ
बागों से आम, अमरूदों की चोरी
वो लुका-छुपी और छुवन-छुवाई
पेड़ों पे चढ़ने की शर्तें लगाना।

स्कूल को बंक करके मूवी को जाना
एक्जाम टाइम पे नकल की तैयारी
वो क्लास में खूब धूम मचाना
वो चीखना-चिल्लाना गाने गाना।

साथ बैठ कर, कुछ करके दिखाने की बातें
वो एमबीए, सिविल को करने की प्लानिंग
सपनों को हर हाल में सच करने की जिद
वो कामयाबी के लिए जी थोड मेहनत।

वो बैठक, हँसी और ठहाकों के दिन
रूठना- मानना, लड़इयो के दिन
गम और खुशी हर पल में शामिल
हर शैतानी और कामयाबी में शामिल ।

आज फिर से वो मुझको याद आ रहे
मेरे पलकों को नमी दे जा रहे
है दुवा की रहो सब सलामत सदा
और जिंदगी में रहे खुशियाँ सदा।

मेरे दोस्तों तुमको सलाम ...................

Wednesday, August 6, 2008

न्यूज़ रूम का हाल

किस पेज पर कौन से लीड
कौन सा फोटो कहाँ लगे
केप्सन साला कहाँ गया
ये ही मारा- मारी रोज।

हेडिंग बदलो, फॉण्ट बदलो
त्रुटियों का रखो ध्यान
नही तो सम्पादक का डंडा
चलेगा अपनी पूरी शान।

शोर- शराबा गरम दिमाग
खबर को रोको खबर को छोड़ो
टी पर ३३ टी पर ३२
एडिट करो बस फिट करो।

भरत जी बस दस मिनट
हरीश जी टाइम का रखो ध्यान
डेड लाइन से पहले काम
डेथ लाइन के हा समान

ये मंत्र सिर्फ़ रखना याद
विज्ञापन को रखना साथ
विज्ञापन न जाने पाए
चाहे न्यूज़ भले ही जाए ।


Saturday, August 2, 2008

ये खूनी खेल


मौत के सौदागरों ने जयपुर के बाद बंगलौर और उसके तुरंत बाद अहमदाबाद को निशाना बनाया । वो कहते है की हमने अल्लाह के निर्देश से ये बदले की कार्यवाही की है। लेकिन कोई उनसे पूछे किस से बदला और कैसा बदला। बदला उनसे जो बीमार थे, जो सड़क के किनारे अपना ठेला लगा कर अपने गुजर-बसर के लिए रोजी - रोटी कमाते थे । या फिर उनसे जो दिन भर का काम खत्म कर अपने घरों को वापस जा रहे थे। इस के पीछे हाथ चाहे जिसका हो एक बात तो पक्की है वो न तो हिंदू है न मुसलमान।
जिस मकसद की वो बात करते है या अगर वो ये कहते है की हमने बदला लिया है तो ये सिर्फ उनका भ्रम है। किसी के सिर से माँ-बाप का साया, किसी के घर का चिराग, हाथों से राखी, मांग से सिंदूर और किसी से उजले भविष्य उम्मीदे छीन कर अगर वो कहते है की हमने बदला लिया है। तो ये कैसा बदला जिसमे इन्सान ही इंसानियत को खत्म कर रहा है बदले के नाम पर।
अरे कातिलों ये बात समझो की आंख के बदले आंख पुरी दुनिया को अँधा कर देगी। इस से पहले की सारी दुनीया अंधी हो ये खूनी खेल बंद करो ....... बंद करो .....बंद करो ...........