अकेला हूँ अपनों के बीच में
अपने लगते है पराये से
कमी कुछ नही है जीवन में
पर क्यों लगता है कुछ नही है पास में
जीत लेने को है अनंत आकाश
बाहें फैलाय कामयाबी बुलाती है
पर नही बड़ते कदम उसका आलिंगन करने को
सोचता हूँ ये कामयाबी क्या देगी मुझे
समाज में नाम, परिवार और प्रतिष्ठा
इक बनावाटी जिन्दगी, इक झूटी शान
नही चाहिए ये दायरे की जिंदगी
जिसमे सब बन्धनों में बंधा हो
जिसमे हर तरफ लक्ष्मन रेखा हो..........
3 comments:
बेहतरीन..
थोड़ा टाईपो हो रही है-शायद गलत की स्ट्रोक के कारण. देखियेगा.
अकेला हूँ अपनों के बीच में
अपने लगते है पराये से
कमी कुछ नही है जीवन में
पर क्यों लगता है कुछ नही है पास में
"nice to read, well said beautiful thoughts"
Regards
बेहतरीन सुन्दर
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