अभी १७ तारीख को हिन्दुस्तान समाचार पत्र के फ्रंट पेज पर खबर थी। उसमें शबाना आजमी ने सी.एन.एन -आई बी एन के इक कार्यक्रम में बताया कि मुसलमान होने के कारण उन्हें मुंबई में फ्लैट खरीदने में दिक्कत हुई। इसी से मिलाती-जुलती कहानी सैफ अली खान की भी थी। ये तो हुई नामचीन लोगो की बात, अब मै बताता हूँ कि इक मेरे सहकर्मी भी इसी समस्या से दो चार हुए, गुनाह सिर्फ़ इतना कि वो भी मुसलमान थे। कुछ इसी तरह कि समस्या दलित और आदिवासियों लोगों के साथ भी होती है। तीनो का कुसूर सिर्फ़ और सिर्फ़ इतना होता है कि इक समाज के सबसे नीचे पायदान का होता है। जिसे सभ्य समाज गन्दा और अपने साथ में बैठने के काबिल नही समझता दूसरा अघोषित आतंकवादी है। और तीसरे का तो निवास स्थान ही जंगल है तो उसका शहर और कस्बों में क्या काम?
अगर बात मुसलमानों कि करें तो पश्चिम के कुछ देश जिनमे अमेरिका अग्रणी है, ने सारी दुनिया के मुसलमानों को आतंकवादी बताने कि मुहीम चला रखी है। हम लोग भी अपने मुसलमान भाइयों को अमेरिका के चश्मे से देखते हैं। अभी हाल में बंगलोर और अहमदाबाद में बम धमाके हुए। पुलिस ने तफ्तीश की और कुछ लोगो को पकड़ा जो की इक खास धर्म की वेश-भूषा के थे। अभी उन पर आरोप सिद्ध भी नही हुए हैं। लेकिन मीडिया वालों ने उनको आतंकवादी घोषित कर दिया। हो सकता है की उनमें से कुछ अपराधी हों लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है की हर आतंकवादी घटना के बाद इक ही धर्म के लोग क्यों पकड़े जाते है? घटना के कुछ समय के बाद ही पुलिस केस को हल केसे कर लेती है? केसे वो मुतभेड में अपराधी को मार गिराती है? अगर उसका नेटवर्क इतना ही तेज है तो वो घटना होने से पहेले ही केवों पता नही लगा लेती?
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2 comments:
musalmano k khusamad mein kuchh bhi likha jaaye,chhadm buddhijiyiyon k beech lekhak apni paith bana leta hai.phir in lekho mein santwana -sondarye k liye tathakathit shosit evam garib vargo ka jrrkr har haal mein kar dena bhi shrshth hai,halaki ye vishay k pariprekshya mein kitna bhi aprasangik ho.
हाल में लालू, मुलायम व पासवान जैसे सिमि समर्थक केन्द्र में सत्ता सुख भोग रहे है, उन्हे चाहिए की वे कानून पारित करवाए की पुलिस मुसलानो को छोड़ कर ही गिफ्तारियाँ करे. सिमि के प्रतिभावान लोगो को तो कतई नहीं.
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