आखिर कर २८ सालों बाद हमने सोना जीत ही लिया। इससे पहले १९८० में मोस्को में हॉकी ने हमें सोना दिलाया था। उस तारीख से कल की तारीख तक एक अरब का यह देश सोने के लिए तरसता रहा था। इस से पहले लिएंडर पेस उसके बाद कर्लुम्माहेस्वारी और पिछले ओलंपिक में राजवर्धन राठोड़ ने कांसा और चांदी का तमगा दिलवाया और किसी तरह लाज रखी। मजे की बात यह है की ११२ साल के ओलंपिक के इतिहास में किसी भारतीय ने पहली बार व्यक्तिगत स्पर्द्धा में सोना जीता है। सरकार इस जीत का सेहरा अपने सर बांधेगी। और सुरेश कलमंडी ( ओलम्पिक सिर्वेसर्वा) इसको अपने प्रयसों का प्रतिफल बतायेंगे ।
लेकिन क्या आप जानते है ? ये सोना कैसे मिला?
थोड़ा इस बारे में जानते हैं।
अभिनव के पिता उद्योगपति है और उन्होंने शूटिंग जैसे मंहगे खेल के लिए अभिनव के ऊपर पुरे पांच करोड़ खर्च किए और प्रक्टिस के लिए घर में ही शूटिंग रेंज बनवा दी. जो शायद हमारे देश का आम बाप अपने खिलाड़ी बच्चे पर नही कर पाएगा। मेरा यहाँ ये बात कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर ओलंपिक जैसी बड़ी खेल प्रतियोगिता में तम्गन जीतना है तो प्रतिभावान खिलाडियों को ऐसी सुविधा उनके आस-पास के खेल मैदानों तक पुहुचानी चाहिये। जिस तरह अभिनव को राज्य सरकारें इनाम देने की घोषणा कर रही है। ऐसे ही घोषणा सहर कस्बों के खिलाड़ियों के लिए करनी चहियें ।
लेकिन क्या आप जानते है ? ये सोना कैसे मिला?
थोड़ा इस बारे में जानते हैं।
अभिनव के पिता उद्योगपति है और उन्होंने शूटिंग जैसे मंहगे खेल के लिए अभिनव के ऊपर पुरे पांच करोड़ खर्च किए और प्रक्टिस के लिए घर में ही शूटिंग रेंज बनवा दी. जो शायद हमारे देश का आम बाप अपने खिलाड़ी बच्चे पर नही कर पाएगा। मेरा यहाँ ये बात कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर ओलंपिक जैसी बड़ी खेल प्रतियोगिता में तम्गन जीतना है तो प्रतिभावान खिलाडियों को ऐसी सुविधा उनके आस-पास के खेल मैदानों तक पुहुचानी चाहिये। जिस तरह अभिनव को राज्य सरकारें इनाम देने की घोषणा कर रही है। ऐसे ही घोषणा सहर कस्बों के खिलाड़ियों के लिए करनी चहियें ।
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