Saturday, November 8, 2008
इंतजार
हर इन्सान की जिन्दगी में शामिल है
इंतजार है कामयाबी का
इंतजार है दौलत-सोहरत का
इंतजार है अपनों का
इंतजार है प्यार का
इंतजार है खुशियों का
इंतजार में एक-एक पल सदियों सा लगता है
इंतजार में लोग एक पल में एक सदी जीतें है
कभी इंतजार खुशी है
तो कभी बेइन्तहां गम
इंतजार तड़प है
मीठा दर्द है, नाराजगी है, मुहब्बत है।
इंतजार सिर्फ़ उसका
जिसे हम दिलोजान से चाहते है
मुझको भी है इंतजार उसका
देखते है उसको कब.........
Thursday, October 30, 2008
क्यूं ये पागलपन है
हर बार की तरह
फिर भावानाओं ने बाहुपास में जकडा है
मालूम है फिर से तड़प, आंशू और जुदाई होगी
लेकिन दिल है कि सुनने को तैयार नही।
सोचता हूं, मौला ने कर्म फरमाया है या सजा दी है
सब कि तरह मुझ को भी बनाया होता
लोगो से केसे काम निकलना है सिखलाया होता
मुझे में वो सारी बुराई डालता
जो जमाने में जिंदा रहने को जरुरी है।
मुझको भी खुदगर्ज और मौकापरस्त बनाया होता।
मुझको भी सिखलाता थोडी दुनियादारी,
चापलूसी और मक्कारी
ममता, प्यार और नेकनीयती न दी होती।
आँखों में आंशू देता लेकिन मगरमछी
मेरे मौला बड़ी मुश्किल से जी रहा हूं
अपनी इस सराफत पे कुढ़ रहा हूं
मेरे मालिक मुझ को भी शैतान बना
ताकि जिन्दगी के बचे दिन
चैन से काट सकूं..............
Wednesday, October 22, 2008
अजब सा हाल
अजब सा हाल है
वो करीब होती है
तो दिल घबराता है
वो दूर होती है
तो चैन नही आता है
उसका ही चेहरा
सोती आँखों में
उसकी छुवन
महसूस होती है हर पल
उसकी मुस्कान
क्यों इतनी दिलकश लगती है
क्यों सिर्फ़ उसको सोचता हूं.....
Monday, October 6, 2008
दुल्हन बनेगी मेरी गुडिया
पता नही कब बड़ी हो गई.
जैसे अभी कल ही की बात हो
जब हम दोनों गुड्डे गुडियों के खेल खेलते थे
साइकल की सवारी करते
स्कूल जाते, लडाई करते।
वो पढ़ती मै न पढने के बहाने करता
मै पिटता तो, तो उसकी सरारत समझता।
उसकी हाथो में लगी मेहंदी ने
बचपन की सारी यादों को रंग दिया
मेरी आँखों को तरल कर दिया
जानता हूं अब वो दौर खत्म हो गया
अब नए रिश्ते होंगे नई बात होगी
जीवन की नई, अलबेली शुरुवात होगी
इक नई और अनजानी डगर पर
वो अपने जीवन साथी के साथ होगी ।
लेकिन माँ की तरह भाई का दिल भी
ममता से सराबोर है घबराता है, पुलकित है
हर्षित है थोड़ा रुवासा भी है।
पता है ममता ये ज्वार उठाती......
Saturday, September 27, 2008
हिंदू या मुस्लिम
हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेडिये
अपनी कूर्सी के लिए जज्बात को मत छेडिये
हममें कोई हुण, कोई शक, कोई मंगोल है
दफ़न है जो बात उस बात को मत छेडिये
गर गलतियां बाबर की थी, जुम्मन का घर फिर क्यों जले
एसे नाजुक वक्त में हालात को मत छेडिये
है कहां हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज खां
मिट गए सब कौम की औकात को मत छेडिये
छेडिये इक जंग, मिलजुल कर गरीबी के खिलाफ
दोस्त, मेरे मजहबी नगमात को मत छेडिये।
अदम गोंडवी
Monday, September 22, 2008
मेरी दोस्त
झीलों के देश से
डरती है धूप से कहीं श्याम न हो जाए
श्याम कहीं उसका श्रृंगार हो न जाए।
वो पागल मस्तमौला हर चेहरे पर मुस्कान लाती
अपनी बातो से वो सबका मन छू जाती
आँखों में भरे सपने भावी जीवन के
बनाती मिटाती मिटा कर बनाती
चाहती हर रंग जीवन में भरना
लाल हरे नीले रंगों का संग करना
है अजब वो, पर गजब है उसके अंदाज
नखरों से नही प्यार से है उसका साज
सादगी उसमें बस्ती संस्कारो का श्रृंगार
सीधी वो भोली वो और कुछ खास
है दुआ ये रब दे उसे खुशियाँ अपार
तरक्की कामयाबी से हो जीवन गुलजार।
मेरी
दोस्त मधुलिका से आप भी हो रु-ब-रु।
Thursday, September 18, 2008
खोया राखी, सिंदूर, लाठी
लाशों के ढेर में शिनाख्त बच्चे की
उम्मीद-नउम्मीद अजीब कशमकश की
अपना नहीं तो लाल है किसी का
राखी है, सिंदूर है, लाठी है किसी का
किसकी लाश खोजू मैं, सब अपने
इस मौत के मंजर में अब नहीं अपने
छीना धमाको ने बेटा नहीं है
छीनी है राखी, लूटा है सिंदूर
तोडा है घर और छीना है सपना
कॉपी, कलम और किताबें खतम की
तोडा है चस्मा और बूढी लाठी
तोडी सुहागन के हाथो की चूड़ी
कुचला है मान अपने वतन का
करना ख़त्म अब इस द्हसत को है
इनको सबक अब हमें है सिखाना..........
Saturday, September 13, 2008
हिन्दी को आजादी चाहिए
हर भाषा की तरह हिन्दी भी अपना रूप-रंग बदल रही है। इसका मतलब ये नहीं है कि वो अपना मूल रूप बदल रही है या उसकी आत्मा में परिवर्तन हो रहा है। ये परिवर्तन स्वभाविक है जो हर व्यक्ति, वस्तु और स्थान के साथ होते हैं। ये परिवर्तन जरुरी भी है क्यों कि ये भाषा की एकरूपता को तोडतें हैं। उसमें नया पन लाते हैं। हिन्दी को ख़ुद खेलने और खिलने की आजादी मिलनी चाहिय। हिन्दी तो सतत प्रवाहित धारा है धारा जरुरी नहीं की सीधी ही चले, आड़ी-तिरछी भी चलेगी। उसे उसी रूप में बहने नहीं दिया गया तो, उसके साथ अन्याय होगा।
आज हिन्दी की दुर्दशा का इक मुख्य कारण कुछ हिन्दी के पंडितो के द्वारा इसको इक दायरे में बाँध देना है। उनको शायद ये बात समझने में तकलीफ होती है कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जो परिवर्तन के अनकूल अपने को ढाल लेगा उसका ही अस्तित्व होगा। ये बात इन महानुभावों को समझनी चाहिय कि ये नियम भाषा पर भी लागू होता है।
आज हिन्दी सारी दुनिया में परचम लहरा रही है। भारत से बाहर बसे लोग आज ब्लॉग, फिल्मों ,पत्र- पत्रिकवों के माध्यम से अपने विचारो को अभिव्यक्ती दे रहे हैं। हिन्दी फिल्में विदेशो में कितना अच्छा कारोबार कर रही हैं। अगर इस बदलते दौर में हिन्दी ना बदली तो हम केसे बहार के लोगो से संवाद स्थापित कर पाएंगे। संवाद न होने की स्थति में हम उनकी सभ्यता, संस्क्रति को समझ नही पाएंगे। इस से नुकसान हिन्दी को ही होगा। वह कभी प्रगति नही कर पायेगी.
Saturday, September 6, 2008
पानी के बुलबुले
बनती है बिगडती है हर पल
कभी सपनों में कभी हकीक़त में
कभी अपनों में कभी बेगानों में।
बुलबुले की तरह जिन्दगी अनजान बेपरवाह
न आने का गम न जाने की परवाह
अगर आई है इस धरा पे तो जीना चाहती है
इस दुनिया के रंजो-गम को समेटना चाहती है।
बुलबुले की तरह जिन्दगी मदमस्त-मस्तमौला
ना देखती है आँगन गरीब का अमीर का
न देखती है हिन्दू न देखती है मुस्लिम
वो बनती हर आंगन वो बनती हर मजहब।
बुलबुले की तरह जिन्दगी आई है रंग भरने
कभी हँसी के कभी गम के
कभी हार के कभी जीत के
कभी हार कर जीत जाने का।
बुलबुले की तरह जिन्दगी आई है मिट जाने को
पर मिटने से पहले इस जन्हाँ को दे जाने को
कुछ यादें, कुछ रंग और जीने का फन
न बनने की खुसी न फूट जाने का गम।
Wednesday, September 3, 2008
दिल-ही-दिल में
आँखों से शुरू होकर दिल में उतर जाती है।
साला आदमी की जान पर बन आती है।
खता आँखे करे भुगतना दिल, जीगर, किडनी को पड़े।
अगर वो हां करे तो समझो साला जान गई।
अगर वो ना करे तो सारी दुनिया जान गई
इस खतरनाक बीमारी को जो पालता है
दारू, गांजा, भांग, में शुकून पाता है।
धीरे-धीरे ये बीमारी स्वर्ग पहुंचती है
स्सला भरी जवानी में मोक्छ दिलवाती है
दिल के दौरे से भी चूक हो जाती है
लेकिन ये बीमारी जान लेकर जाती है।
कवियों, शयरों, गीतकारों ने हजारों टन रद्दी
मोहब्बत के फसाने लिखकर बर्बाद की है
इन मोहब्बत पसंद लोगों ने ही मयखानों
नाच- गानों के कल कारखानों को इज्जत दी है
कुछ भी हो मोहब्बत चीज है कमाल की
हो जाए तो मजा आ जाता है
स्साला दिन में तारों की तो बात छोड़ो
पुरा चाँद मय चांदनी नजर आता है।
बागों में भवरें, पतझड़ में सावन
रेगिस्तान समुंदर नजर आता हैं
दिल की धडकनों का न हाल पूछो साहब
चरों वोर सिर्फ़ महबूब नजर आता है
इसी लिए कहता हूं साहब
मोहब्बत, अमन- चैन का नगमा गावो
मुहब्बत करो इसे न भुलावो ...............
Sunday, August 31, 2008
Thursday, August 28, 2008
अकेला हूँ
अकेला हूँ अपनों के बीच में
अपने लगते है पराये से
कमी कुछ नही है जीवन में
पर क्यों लगता है कुछ नही है पास में
जीत लेने को है अनंत आकाश
बाहें फैलाय कामयाबी बुलाती है
पर नही बड़ते कदम उसका आलिंगन करने को
सोचता हूँ ये कामयाबी क्या देगी मुझे
समाज में नाम, परिवार और प्रतिष्ठा
इक बनावाटी जिन्दगी, इक झूटी शान
नही चाहिए ये दायरे की जिंदगी
जिसमे सब बन्धनों में बंधा हो
जिसमे हर तरफ लक्ष्मन रेखा हो..........
Tuesday, August 26, 2008
परेशान हूँ मैं
कुछ लिखना चाहता हूँ पर लिख नहीं पाता हूँ ।
सोचता हूँ पर सोच नही पाता हूँ
विचारों ने भी दामन छोड़ दिया है।
शब्दों ने आकार लेना बंद कर दिया है
ऐसा लगता है अभिव्यक्ति अब मुश्किल है।
बस संस्थान के निर्देशों पर इस कलम को चलाना है ।
आगे का जीवन कलम की दलाली करके बिताना है ।
सोचता हूँ छोड़ दूँ इस बंधुवा कलम को
लेकिन............................................
Saturday, August 23, 2008
कृष्ण दीवानी ..........
कभी सूनी न ऐसी कहानी
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !
द्वरिका में राधा गोपी
घट घट घूमें वो तो जोगी
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !
श्याम से उसने लगन लगाई
सब के मन में जोत जगाई
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !
धड़कन बोले गिरधर-गिरधर
मन में शमाए कितने मंजर
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !
ऐसी भक्ति, ऐसी पूजा
देखा नहीं है कोई दूजा
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !
जप कर तेरे नाम की माला
रास का हाला विष का प्याला
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !
दर्शन दर्शन अँखियाँ तरसे
गिरधर तेरी मेहर को तरसे
भई बेगानी, कृष्ण दीवानी !
ज़ाहिर सर की कलम से
सृजन रात १२.२७ से १२.30
Thursday, August 21, 2008
शबाना को मुश्किल से मिला फ्लैट
अगर बात मुसलमानों कि करें तो पश्चिम के कुछ देश जिनमे अमेरिका अग्रणी है, ने सारी दुनिया के मुसलमानों को आतंकवादी बताने कि मुहीम चला रखी है। हम लोग भी अपने मुसलमान भाइयों को अमेरिका के चश्मे से देखते हैं। अभी हाल में बंगलोर और अहमदाबाद में बम धमाके हुए। पुलिस ने तफ्तीश की और कुछ लोगो को पकड़ा जो की इक खास धर्म की वेश-भूषा के थे। अभी उन पर आरोप सिद्ध भी नही हुए हैं। लेकिन मीडिया वालों ने उनको आतंकवादी घोषित कर दिया। हो सकता है की उनमें से कुछ अपराधी हों लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है की हर आतंकवादी घटना के बाद इक ही धर्म के लोग क्यों पकड़े जाते है? घटना के कुछ समय के बाद ही पुलिस केस को हल केसे कर लेती है? केसे वो मुतभेड में अपराधी को मार गिराती है? अगर उसका नेटवर्क इतना ही तेज है तो वो घटना होने से पहेले ही केवों पता नही लगा लेती?
Thursday, August 14, 2008
अभिनव इंडिया, अनुपम इंडिया, अद्वितीय इंडिया
बात वो बहुत पुरानी है।
आज ये नई कहानी है॥
साथ सारा देश है तेरे।
और सारी दुनिया दीवानी है॥
मिल्खासिंह और मल्लेस्वरी का रुदन है
और पीटी उषा का भी करुण क्रंदन है
सत्य, अहिंषा, संयम व सदभावना के संग
खुशियों से झूमते सारे देश का वंदन है
आतंकवाद के दौर में
अमरनाथ के शोर में
काल के कपाल पर
आँख की भी ताल पर
ये सुहानी रात है
इक नई सी बात है
झूमती है कामधेनु
जबरदस्त मात है
उड़ गया झू हो गया छू
सुनहरा हार है रूबरू
पल्झिनो का साथ है
क्या कमाल हाथ है।
हर तरफ है इक उमंग
बज रही है जलतरंग
बजा चीन में जन गन मन
नाच उठा है ये तन मन
जान ले ये बेखबर !
हाथ में है ये नजर!
खामोशी को चीर कर
आया है ये समर
जीत चुका है वो समर।
ऍम. आई जाहिर सर की कलम से ...........
Monday, August 11, 2008
जीत लिया सोना
लेकिन क्या आप जानते है ? ये सोना कैसे मिला?
थोड़ा इस बारे में जानते हैं।
अभिनव के पिता उद्योगपति है और उन्होंने शूटिंग जैसे मंहगे खेल के लिए अभिनव के ऊपर पुरे पांच करोड़ खर्च किए और प्रक्टिस के लिए घर में ही शूटिंग रेंज बनवा दी. जो शायद हमारे देश का आम बाप अपने खिलाड़ी बच्चे पर नही कर पाएगा। मेरा यहाँ ये बात कहने का मतलब सिर्फ़ इतना है कि सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि अगर ओलंपिक जैसी बड़ी खेल प्रतियोगिता में तम्गन जीतना है तो प्रतिभावान खिलाडियों को ऐसी सुविधा उनके आस-पास के खेल मैदानों तक पुहुचानी चाहिये। जिस तरह अभिनव को राज्य सरकारें इनाम देने की घोषणा कर रही है। ऐसे ही घोषणा सहर कस्बों के खिलाड़ियों के लिए करनी चहियें ।
Saturday, August 9, 2008
दोस्तों की याद
बचपन के खेल वो दोस्तों का साथ
बागों से आम, अमरूदों की चोरी
वो लुका-छुपी और छुवन-छुवाई
पेड़ों पे चढ़ने की शर्तें लगाना।
स्कूल को बंक करके मूवी को जाना
एक्जाम टाइम पे नकल की तैयारी
वो क्लास में खूब धूम मचाना
वो चीखना-चिल्लाना गाने गाना।
साथ बैठ कर, कुछ करके दिखाने की बातें
वो एमबीए, सिविल को करने की प्लानिंग
सपनों को हर हाल में सच करने की जिद
वो कामयाबी के लिए जी थोड मेहनत।
वो बैठक, हँसी और ठहाकों के दिन
रूठना- मानना, लड़इयो के दिन
गम और खुशी हर पल में शामिल
हर शैतानी और कामयाबी में शामिल ।
आज फिर से वो मुझको याद आ रहे
मेरे पलकों को नमी दे जा रहे
है दुवा की रहो सब सलामत सदा
और जिंदगी में रहे खुशियाँ सदा।
मेरे दोस्तों तुमको सलाम ...................
Wednesday, August 6, 2008
न्यूज़ रूम का हाल
कौन सा फोटो कहाँ लगे
केप्सन साला कहाँ गया
ये ही मारा- मारी रोज।
हेडिंग बदलो, फॉण्ट बदलो
त्रुटियों का रखो ध्यान
नही तो सम्पादक का डंडा
चलेगा अपनी पूरी शान।
शोर- शराबा गरम दिमाग
खबर को रोको खबर को छोड़ो
टी पर ३३ टी पर ३२
एडिट करो बस फिट करो।
भरत जी बस दस मिनट
हरीश जी टाइम का रखो ध्यान
डेड लाइन से पहले काम
डेथ लाइन के हा समान
ये मंत्र सिर्फ़ रखना याद
विज्ञापन को रखना साथ
विज्ञापन न जाने पाए
चाहे न्यूज़ भले ही जाए ।
Saturday, August 2, 2008
ये खूनी खेल
Saturday, July 12, 2008
राजनीति का नाटक
Wednesday, July 9, 2008
कन्या भ्रूण की माँ से विनती
Tuesday, July 1, 2008
फ़ेल किया चार लाख बच्चों को
Sunday, June 29, 2008
आप में है वो बात
Monday, June 23, 2008
हाय-हाय महंगाई
Friday, June 20, 2008
अरुषि को बना दिया मजाक
Thursday, June 19, 2008
मेरा गांव
वो नानी की कहानियाँ वो माँसी से खटपट वो चुपके -चुपके गेहू बेच कर बरफ ( एस्क्रीम")खाना।
न जाने कहना खो गया ..........................
Sunday, June 8, 2008
बचपन की सोच
बचपन मे स्कूल मे जब राजस्थान के बारे मे पढ़ा था। तो बाल मन मे ये धरना बन गयी थी कि पूरा राजस्थान रेगिस्तान है। जो जवानी के २२ बसंत देखने के बाद भी बनी रही। आज जब मैं राजस्थान के सहर उदयपुर मे रोजी-रोटी के सिलसिले मे हूँ। राजस्थान को देख, सुन और समझ रहा हूँ। तो अपने ज्ञान पर हँसी आती है। आज ही मैं ने यहाँ हुई बारिस का भरपूर आनंद लिया।